"सो रहा समाजवाद" ........?
पिछले कुछ दिनों से ऐसा क्यों लग रहा है कि जिस राज्य में समाजवाद व्यवस्था को आधार बनाकर सत्ता चल रही है असल में वहां तथाकथित "समाजवाद" जैसा कुछ नहीं है , ऐसा इसी व्यवस्था के साथ ही क्यों होता है कि जब समाजवाद की सत्ता आती है तभी यहाँ सब कुछ असमाजवादी प्रथा चल जाती है , हालाँकि मै ये नहीं कह रहा हूँ की पूर्ववर्ती सरकारें दूध की धुली हुईं थी या उनके शासन काल में "रामराज्य " था , लेकिन उन शासनों में कम से कम प्रसाशन स्तर पर हीला हवाली जैसा काम इस हद से कम ही था ।
2012 में प्रदेश के चुनावों में समाजवाद के झंडाबरदार रहे माननीय अखिलेश जी "टीपू भइया" ने जिस तरीके सत्ता में पुनः आने की जिजीविषा को जगाया था , और ये दिखाने की कोशिश की थी की अब वो पहले वाली समाजवादी प्रथा नही चलेगी और अब समाजवादी नए रंग रोगन में रंगी नजर आएगी , उस समय उन्होंने एक बानगी भी दिखाई थी कि चुनावो के ठीक पहले जिस तरीके उन्होंने बाहुबली डी पी यादव को पार्टी में नहीं लेकर अपने ही पुरातन लोहियावादियो की नाराजगी मोल ली थी , ऐसे में वाकई ये लगा था कि अब "समाजवाद" अपने फॉर्म में आ जायेगा , सत्ता आई और खुशियो के बुलबुले इस तरीके दिखाए गए और इसके ठीक दस दिन के भीतर ही समाजवादियो की हुड़दंगी सबके सामने आने लगी । उन गलतियों को ढकने का एक तरीका ये दिखा की जनता को टैबलेट , लैपटॉप , कन्या धन जैसी योजनाओ से लाद दिया गया । लेकिन प्रशासनिक स्तर का काम धरातल पर नहीं उतर पाया और परिणामतः आज तक समाजवादियों का केवल स्याह चेहरा ही दिखा है या दिख रहा है |
खैर , मुद्दे की बात ये है की इस वक्त प्रदेश में जिस तरीके से जरायम के नए नए इतिहास लिखे जा रहे हैं , और उनके इतिहास में भी आप उनके तरीको को देखिये तो ये पता चलता है कि प्रशासन का खौफ और ब्यूरोक्रेसी की ताकत के साथ पुलिस की कार्यशैली सभी पर सवालिया निशान लग रहे हैं । अपराधो में भी अगर बात करें तो महिला अपराधों की तो बाढ़ सी आ गयी है , और साम्प्रदायिक सौहार्द अब बीते ज़माने की बात सी लगने लगी है, आज प्रदेश का हर इलाका , हर जिला एक खौफ और साम्प्रदायिक उन्माद के आग में सुलग है ।
पहले महिला अपराधों की बात करें तो बीते छ महीनो में वीभत्स्ता की हद तक अपराध हुए हैं । इन्ही अपराधों में कुछ का नाम लें तो पहले तो ताज़ा मामला मेरठ के खरखौदा में एक लड़की के साथ कथित गैंगरेप और धर्मान्तरण का मामला चल रहा है , जिसमे पुलिस की विवेचना पर सवालिया निशान बने हुए हैं , पिछले 26 -27 मई को बदायूं के कटरा सादातगंज में दो बहनो के साथ हुए गैंगरेप के बाद उनके पेड़ से लटकाकर हत्या , इसी के एक हफ्ते के भीतर ही देवरिया में नव दंपत्ति की पेड़ से लटकाकर हत्या , उसी के दो दिन के भीतर सीतापुर में नाबालिग लड़की को पेड़ से लटकाकर हत्या , इस घटना के पंद्रह दिनों के भीतर हमीरपुर में थाने के अंदर महिला से तीन कॉन्स्टेबलों ने एसएचओ के साथ मिलकर कथित रेप किया ,जिसमे महिला अपने पति को छुड़ाने सुमेरपुर पुलिस थाने आई थी , इसमें तो बदायूं मामले की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक भर्त्सना की गयी थी । इन घटनाओ के बीच अगर लखनऊ के मोहनलालगंज में पिछले जुलाई महीने की 17 तारीख की बात न करें तो बात ही नही पूरी होगी , इस मामले में सबसे बड़ी लापरवाही बात निकल कर आती है कि पूरे लखनऊ की सुरक्षा आपने जिस समारोह को सकुशल बनाने के लिए कर दी, वीभत्स्ता की हद का अपराध भी उसी इलाके में होता है । बिल क्लिंटन की आवभगत में जुटा प्रशासनिक अमला इस अपराध से अनजान बना था और एक महिला की बड़ी निर्दयता से हत्या हो जाती है , जिसकी गूँज सड़क से संसद तक सुनाई पड़ी थी और अभी भी ये मामला सरकार की नाक का बाल का बना हुआ यही क्योंकि इसकी विवेचना अभी स्पष्ट नहीं है ।
अब बात कर लें प्रदेश की बिगड़ती साम्प्रदायिक सौहार्द की , तो अभी ताज़ा सहारनपुर का मामला ही लें तो पिछले 25 - 26 जुलाई को भड़की हिंसा का खौफ अभी तक मौजूद है , इस हिंसा में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से तीन की मौत बताई गयी , उससे पहले 27 जून को मुरादाबाद के कांठ में भी हिंसा हुयी , हिंसा को साम्प्रदायिकता का रंग देने के लिए बी जे पी भी कहीं पीछे नहीं रही । और पिछले साल अगस्त के आखिरी में हुयी मुजफ्फरनगर की साम्प्रदायिक हिंसा अभी भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली , बागपत , मुजफ्फरनगर में अपने निशान नही छोड़ा है । इसके आंच में आये पीड़ित अभी तक शरणार्थी बने हुए हैं ।
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ बर्बर अपराधों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दावा कर रहे हैं कि उनके राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति देश के कई अन्य हिस्सों की तुलना में बेहतर है।सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले पर चौतरफा हमलों के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं ने मीडिया पर निशाना साधा और अजीबोगरीब दलीलें पेश करते हुए कहा कि कभी-कभी जब लड़कियों और लड़कों के बीच संबंध सामने आ जाते हैं, तब इसे 'बलात्कार का नाम दे दिया' जाता है।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने बदायूं में दो लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले पर मीडिया में हो रही कवरेज को लेकर अपनी नाखुशी छिपाई नहीं और पत्रकारों से कहा, आप अपना काम कीजिए और हमें अपना काम करने दीजिए।
सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने इस तरह के अपराधों के लिए टीवी चैनलों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि वे नग्नता और हिंसा दिखा रहे हैं। रामगोपाल यादव ने मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा कि इस तरह के मामले राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी हो रहे हैं, लेकिन उनको नहीं दिखाया जा रहा है।
इन घटनाओं पर मौजूदा केंद्र सरकार भी हरकत में है और सात अगस्त को संसद में प्रदेश की कानून व्यवस्था का मामला उठा और सांप्रदायिक हिंसा पर संसद में आंकड़े पेश हुए यूपी में सबसे अधिक 32 मामले सांप्रदायिक हिंसा के हैं ऐसा आंकड़ों में कहा गया है ।
ये सारी बातें एक प्रदेश के सेहत के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती , क्योंकि एक ऐसा प्रदेश जिसका राष्ट्रीय परिदृश्य में अलग पहचान हो , और उस पर "समाजवाद" की कोरी ही सही लेकिन एक सभ्य समाज को दिशा देने वाली व्यवस्था का राज हो उस प्रदेश की ऐसी हालत उसके धमनियों में एक विशेष प्रकार का खौफ का ही संचार करता है । और ये खौफ उसके प्रजा के लिए हमेशा ही टीस देता रहेगा , और प्रजा से भी यही गुहार है की ,
सहमे रहिये क्योंकि "समाजवाद सो रहा है" …………………
पुरबिया बकैतबाज...

