ऐसे पार करेंगे ''मिशन 272'' जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं , और लोकसभा महासमर के अश्वमेध यज्ञ के लिए सेनाएं तैयार हो कर अपने महारथियों का ऐलान कर रही हैं वहीँ , अपने आपको अगले सत्ता के रथी के रूप दावा कर रहे भारतीय जनता पार्टी के भीतर क्या वाकई में सब ठीक ठाक है ? माहौल और हालातों को देखने से ऐसा लगता तो नहीं , हालाँकि "बाऊ राजनाथ '' और उनके अश्वमेधी धुरंधर ऐसी बातों से इंकार कर रहे हैं , और कह रहे हैं ''ऑल इज़ वेल '' ........
पहले डॉ. मुरली मनोहर जोशी की वाराणसी से उम्मीदवारी, फिर लालकृष्ण आडवाणी की गांधीनगर से लड़ने के प्रति अनिश्चितता ने भाजपा नेतृत्व और खासकर उसके प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी की चुनाव प्रबंधन क्षमता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। इन दो राजनीतिक घटनाओं से एक बात तो साफ़ हो गयी कि भारतीय जनता पार्टी के अंदर कुछ ऐसा मंथन हो रहा है जो आगे चल कर कहीं "हलाहल विष'' का रूप न धारण कर ले कि शीर्ष नेतृत्व के पास कोई जवाब न बचे ।
भाजपा में आडवाणी और जोशी दोनों एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। लेकिन भाजपा नेतृत्व के व्यवहार ने इस मामले में दोनों को एक कर दिया है। दोनों नेताओं के समर्थक संघ व भाजपा में व्यक्ति विशेष को सर्वोपरि कर देने की कथित तौर पर नई परंपरा को इस सबके लिए कोस रहे हैं।
यहाँ इन दो तथ्यों से यह साफ संदेश गया है कि भाजपा में शीर्ष स्तर पर नेताओं के बीच संवादहीनता चरम पर है और आपस में एक दूसरे को शक की निगाह से देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के बाद जो भी संभावित दावेदार हो सकते हैं उन्हें जानबूझकर बेइज्जत किया जा रहा है। डा. जोशी ने वाराणसी के बजाए कानपुर से लड़ने को लेकर कभी आपत्ति नहीं की। लेकिन पहले दिन से किसी ने भी उन्हें भरोसे में लेने की कोई कोशिश नहीं की। यही आडवाणी के साथ भी हुआ। पहले उन्हें राज्यसभा में भेजने की अफवाहें फैलाई गई। जब उन्होंने साफ कर दिया कि वह लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं तो गांधीनगर स्थानीय कार्यकर्ताओं में उनके खिलाफ रोष के समाचार आने लगे।इस परिप्रेक्ष्य में पिछले कुछ समय में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच जिस तरह आडवाणी की मोदी विरोधी छवि बनाई गई है उसमें आडवाणी के लिए भोपाल के अलावा और कोई सुरक्षित सीट रह भी नहीं गई है। गांधीनगर से उम्मीदवारी के केंद्रीय चुनाव समिति के फैसले को 24 घंटे लटका कर आडवाणी ने कभी अपने शिष्य रहे मोदी को उनके ही खेल में मात दी है। आडवाणी विरोधी भी मान रहे हैं कि गांधीनगर में अब मोदी को वडोदरा से ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। जबकि नेतृत्व अभी भी आश्वस्त नहीं है कि इसके बाद आडवाणी कोई बखेड़ा नहीं करेंगे।
आज जाकर स्पष्ट हुआ की बी जे पी के ''लौहपुरुष '' ने अंततः अपनी हामी भर दी ,गुजरात के गांधीनगर से उम्मीदवार बनाए जाने से खफा बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने आखिरकार तस्वीर को साफ करते हुए कहा कि अब वे गांधीनगर सीट से ही लोकसभा चुनाव का चुनाव लड़ेंगे , हालाँकि अब आगे पता चलेगा कि ये चुनावी पैंतरे बी जे पी को किस दिशा में ले जाते हैं ।
''पुरबिया बकैतबाज'' ........


