Sunday, 6 December 2015



एक बार फिर से "अयोध्या"......

बरसों की बरसी आज फिर आई
सबको हमारी तुम्हारी याद आई
लगा शहर में ये कैसा मेला है
ओह! शायद आज ,
सालाना उर्स "रामलला" का है ???

संगीनों के साये में मनाने फिर से
भक्ति, उन्माद , शौर्य और ग़म
फिर से जुट रहे "राम" और "रहीम"
के ठेकेदार ,
आज फिर अपनी भुजाएं फड़काकर
देंगे तुमको अपने फिर वादे और इरादे ..
शहर की गलियां आज भी एक वीराने में हैं
"लौटन"और "ज़मील" आज भी बैठे हैं
नुक्कड़ की "दरे" वाली
"छींके" वाली एक प्याली ,
पीने को .....

मगर आज कुछ अलग सा है मोहल्ला
मोहल्ले में ये सफेदपोश कौन है
और दूसरे कोने में खड़ा वो संगीनपोश
आज कहाँ से आया ...!!
ना तुम्हारा है , ना हमारा है
शहर का नज़ारा सबका है
उस नुक्कड़ की कोने से
इस मन्दिर के चौबारे तक
सारी सीमाएं इंसानियत की हैं..

मगर ए खाकी और खद्दर वालों
सुन लो गौर से ,
इस गंगा और जमुना से "पाक"
शहर में मत घोलो जहर ,
हलाहल और विष ,
यहां है जुम्मन की खटिया भी,
यहां लगती है खेलावन सिंह की
महफ़िल भी ...!!

मज़लिस, अज़ान...कथा और भागवत
यहां होते सभी एक ही रिवाज़ से
यहां दिगम्बर भी हैं राम और परशुराम भी
यहां हैं दरगाह और ईदगाह भी
दुर्गापूजा की देवियों पर करते है
पुष्पवर्षा .....चौक वाले "इमाम" भी...!!

इतने पवित्र शहर की आब -ओ हवा में
मत घोलो रंजिश , नापाक इरादों वालो
ख़ाक हो जाओगे इंसानियत को
इंसानियत से लड़ाने वालों ...
आओ खाओ पियो ,
सैर करो निकल जाओ ,
बस इतने में ही सुकून करो
ना तुम्हारा है , ना उसका है
ये प्यारा शहर हमारा है ...
ये प्यारा शहर हमारा है .....!!!

जो न लड़ा गया , जिसे न जीता गया
ये जुड़वां शहर निशानी हैं,
राम से लेकर नवाबों तक
शहर की हर ईंट में छाप पुरानी है
सरयू के घाट से लेकर ..
चौक के घड़ियाल तक ,
हर निशानी में छाप पुरानी है !!
ये प्यारा शहर हमारा है ..
ये प्यारा शहर हमारा है ...!!!
"अयोध्या" आज फिर याद आई  ...!!

--फ़ैज़ाबादी अलफ़ाज़ .....

पुरबिया बकैतबाज़ ! 

Monday, 14 September 2015



हिंदी का सम्मान ………………। 


हिंदी तुम हो राष्ट्र का मान ,
तुम हो सर्व समाज की शान ..!!
तुमसे ही है समाज की धारा ,
तुमसे है कल और आज हमारा ..!!

हिंदी का जब से ज्ञान हुआ ,
तब से सब आसान हुआ ...
क्या लिखना ,पढ़ना क्या बोलें ,
इसी से सब  सम्मान हुआ !!

जबसे संस्कार में तुम आई ,
तबसे ज्ञान की ज्योति पायी ..
हिंदी से सबका है चलना ,
उठ के चलना और पकड़ना ..

मगर हाय ! 
ये कैसी "मॉडर्न ता "...
भेड़ चाल में भूल गए मौलिकता ..
हिंदी से न रही नैतिकता ,
भूल गए सारी सार्थकता ..

भाषा के सम्मान हेतु ,
चलो बनाएं एक सेतु ,
प्राच्य काल के इस जननी का
हो उद्धार करें ऐसा कुछ !!

सर्व जन और सर्व सुलभ हो
हिंदी की ऐसी सदगति हो ,
भाषा के सदा उत्थान के लिए ,
फिर से नया एक मार्ग बनाये ...!!!




.........आज हिंदी दिवस पर भावनाएं समर्पित !!!!!!

Saturday, 12 September 2015

"इधर बीच कुछ लिखने की आदत सी हो रही है , बरबस उंगलिया कीपैड पर लड़खड़ाने लगती है , और कुछ उलटी सीधी लाइने जोड़ने की कोशिश करता हूँ , लिहाज़ा कुछ बनी, कुछ अन बनी सी पंक्तियाँ जुड़ जाती हैं आज एक बंधू ने सलाह दी की इसको सबके सामने लाओ , लिहाजा बस ऐसे ही सोचा की इन्हे एक प्लेटफॉर्म तो देना बनता ही है , नहीं तो ये इनका अपमान होगा , भाषा का अपमान होगा , और साहित्य का भी " .... 

तो ये हैं कुल जमा तीन कवितानुमा भावनाएं हैं , जो आपके सामने हैं ....... 


1 _ये एक अनजान प्रेमिका के लिए शायद ....... !

ये मुस्कराहट ये शोखी ...कहीं कुछ कहना चाहते हैं ..ये खुले गेसू , ये लटें  मत समेटो ....ये पुरवाई में बह जाना चाहते हैं ...
तुम्हारे सुर्ख होठों से झांकते तुम्हारे वो अधकटे वाले छोटे मोती , जिन्हें तुम छिपाती हो ..
वो भी आज़ादी चाहते हैं ..… 
इन आजादियों और शोखियों को मत छुपाना ,ये पर लगाकर उड़ जाना चाहते हैं .......!!
इन आँखों में अभी भी बहुत अनकही बातें हैं ,इन्हें निकल जाने दो ...
और हाँ वो आँखों के किनारे वाले करीने से जो अश्क निकलते हैं ,उन्हें बह जाने दो ....
तुम्हारी वो खिलखिलाहट वाली मुस्कराहट और वो अल्हड़पन ना जाने क्यों अभी भी कहीं सुनाई देती है ...
ढूंढता हूँ उन्हें कहीं किसी ओर से  दिखाई दे जाए शायद ..
शायद किसी मेट्रो पर ,या किसी चौक पर ...या शायद मंडी हाउस के वो गोलचक्कर वाली किसी सड़क पर ....
खैर ये तो इक बहाना था ,असल में तुम हो ही वैसी जो जाते जाते जाओगी ,
बस वो बीते लम्हे या वो सेकेण्ड वाले मिनट के पैक्स शायद ही फिर से आएंगे .........!!!!
बस ये मुस्कराहट और शोखी कुछ कहना चाहते हैं ........!!!!

2 _रात के बीतने और जवां होती सुबह , और उसपर बोझिल आँखें … 

रात ढल चुकी है , सुबह जवां होने की ओर है ..
चकोर भी अब खामोश है , कोयल की कूक नाचे मयूर है ...!!
खुमारी भी अपने मादकता से आगोश में समेट लेगी ..
रात का नशा दिन में सुरूर चढ़ाएगा ...
आँखों का गुरूर खुद ब खुद बुझ जाएगा ...
क्या किया इस रात में , क्या पता ..
हाँ वो की बोर्ड की खनखनाहट ,
और माउस की सर सराहट  ...
कुछ हुआ तो जरूर था ,
चार ब्रेकिंग और चन्द खबरें ,कुर्सी पर पसरा शरीर ..
चार लाइनों में सिमटी खबरों की रुबाइयाँ ..
और दफ्तर में मिनटों में बनने बिगड़ने वाली रूसवाइयां ....
तन्हा तो नहीं ,लेकिन लोगों के बीच तीखी लगने वाली तन्हाईयाँ ....
बस यही तो था , जो हुआ था ...
अकेला ही था , अकेला सा
जीता हूँ इस उम्मीद में , मिलोगी तुम
बनोगी रहगुज़र , रहगुज़ारी का भत्ता तो तुमसे ही होगा अदा ......
रात गुज़र चुकी है , सुबह जवां होने को है ...!!!!!


3_छोटे सपने कहीं से मिला , आगे खुद ब खुद बनता गया ………… !


छोटे छोटे सपने , किताबी पलको में समाये हैं ...
आशाएं पंख लगा के उड़ जाने को फैलाये हैं ...
कल बनाने को आज से ही कदम बढाए हैं ...
छोटे छोटे सपने .........!!
कुछ पाने और कुछ कर गुजरने की चाहत ऐसी ,
कि हर ख्वाहिश पर दम निकलता है ...
ख्वाहिशों को पंख लगाकर ,परवाज़ देने की चाहत है ..
छोटे छोटे सपने ........!!!
जब देखा , पीछे क्या छूटा ....
वो गलियां वो चौबारे छूटे , मिटटी के वो मेड़ भी छूटे ..
गाँव का पनघट , गांव की चौखट , गाँव का  वो खलिहान भी छूटा ....
छोटे छोटे सपने .......!!!!
गांव के फैले चौबारे से आ पहुंचे कंक्रीट के जंगल ....
मानवता के मूल्यों से ऊपर , तेज़ निकलती दिनचर्या से   होकर ..
रोज़ बदलती , रोज़ सिकुड़ती ,
रोज़ नए ये रंग दिखाती ,
भाग रहे इस जीवन पथ पर .....
छोटे छोटे सपने .......!!!!!
चल रहे हैं , चलते रहेंगे जीवन के इस  अग्निपथ पर ...
सतत् क्रियाशील श्रम के बल पर ,देंगे इस समाज को धारा ...
जैसे गोमुख से गंगा बन , बूँद बन जाती अथाह जलधारा ...
छोटे छोटे सपने ......!!!!!!!!!