Saturday, 9 November 2019



अस्तित्व का  एक रुका हुआ फैसला "अयोध्या " .......






आज......अयोध्या की अविकल, अविरल, सतत पुण्य सलिला

मां सरयू अपने पूरे रौब में बह रही हैं , मां सरयू मानो कह रही हैं "जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते भारतवर्षे एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की ,यही जन्मभूमि है परमपूज्य श्रीराम की", वो राम "लला" मेरे हैं , उन "लला" रूपी राम के अस्तित्व को आज मैं अपने अंदर अनुभूति करके खुद को एक बार फिर से गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ। वो सरयू मानो कह रही हैं कि सुनो सम्प्रदाय के नाम पर राजनीती करने वालों आज फिर एक बार ये सार्वभौमिक सत्य सबके सामने है कि "अयोध्या सबकी है, क्योंकि राम सबके हैं", इस लिए अब बस करो नफरतों , वैमनस्यता को दूर करके इस राष्ट्र की उन्नति की ओर अपना कदंम बढ़ाओ।

आज का दिन ऐतिहासिक बन गया, और आने वाले सदियों तक के लिए इतिहास बन गया ये देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला, जिसने देश में लंबे समय से राजनीति का केंद्र रहे अयोध्या मसले को एक मूर्तरूप दे दिया। उसमें अयोध्या की अब तक विवादित रही जमीन, जिसे रामजन्मभूमि कहा गया , उसे  हिंदू पक्षकारों को दे दी है। इस तरह से अगर देखा जाए तो अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है, हालांकि इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने मुस्लिम पक्ष को भी अयोध्या में ही महत्वपूर्ण स्थान पर 5 एकड़ जमीन मस्जिद के लिए देने का भी निर्देश दे दिया।

यह जीत-हार की प्रतिक्रियाओं से बाहर आने का वक़्त है। राम में आस्था का सीधा-सा मतलब है कि राम के चरित्र को एहसास में उतारने का उपक्रम किया जाए। प्रभु राम समाधान के हर जतन के बाद अन्तिम क्षणों में युद्ध का उद्घोष करते हैं, लेकिन युद्ध जीत जाने के बाद भी अपने दुश्मन से नफ़रत नहीं करते, बल्कि दुश्मन की क़ाबिलियत को पूरा आदर देते हुए अपने भाई को शत्रुरूपी रावण के पास ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजते हैं। भारत अपने सांस्कृतिक शिखर को दुबारा पाना चाहे तो रास्ता नफ़रत का नहीं, प्रेम का ही हो सकता है।

आज अधिकतर मुस्लिम नेताओं/संगठनों/लोगों ने जिस संयम तरीके से जिस तरह आज खुद को पेश किया उससे कुछ खास लोगों की "मंशा" पूरी तरह फेल हो गयी जो मुद्दा को और खींचना चाहते थे। यहाँ साधुवाद ऐसे सभी मुस्लिमों भाइयों को भी है ,जिन्होंने इस फैसले को "नज़ीर" बताया , ये फैसला आने वाली नस्लों के लिए उनकी एक दशा और दिशा तय करेगा ,फैसले के बाद की स्थितियों को लेकर जतायी जा रही तमाम आशंकाओं और अटकलों के विपरीत उत्तर प्रदेश में हालात बिल्कुल सामान्य रहे। शुरू में सड़कों पर सन्नाटा जरूर दिखा, मगर बाद में लोगों और वाहनों का आवागमन सामान्य रहा। रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद विवाद में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को प्रमुख पक्षकारों के साथ- साथ पूरे उत्तर प्रदेश ने बेहद सहज भाव से स्वीकार किया और फैसले के बाद हालात बिल्कुल सामान्य रहे। मामले के अहम पक्षकार रहे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और इकबाल अंसारी ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए ऐलान किया कि वह इस फैसले को चुनौती नहीं देंगे।


इसी ऐतिहासिक फैसले में निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय द्वारा विवादित जमीन से अपना दावा खारिज किये जाने पर कहा कि उन्हें इसका कोई मलाल नहीं है क्योंकि अदालत ने रामलला के पक्ष में फैसला दिया है। 



अयोध्या मामले में आज जिस बेंच ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया है , वो बेंच भी ऐतिहासिक बन गयी है , क्योंकि ये बेंच भविष्य के  इतिहास के सिलेबस जरूर पढ़ाई जाएगी,इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने सर्वसम्मति से इस मामले पर अपना फैसला सुनाया है। 
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खाते में यूं तो कई अहम फैसले हैं, लेकिन शायद उन्हें सबसे ज्यादा याद राम जन्मभूमि के फैसले को लेकर किया जाएगा। 70 साल से अटके इस विवाद को जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुना। पीठ ने 40 दिन लगातार सुनवाई की। मामले से संबंधित सभी पक्षों को सुनने के बाद सुनवाई को खत्म किया गया।


जस्टिस गोगोई के बाद बनने वाले देश के अगले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शरद अरविंद बोबडे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के बाद सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं। वह 12 अप्रैल, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने।गोगोई के सेवानिवृत्त होने के बाद जस्टिस बोबडे आगामी 18 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। जस्टिस बोबडे कई अहम मामलों में फैसला दे चुके हैं। इनमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करना, प्रदूषण नियंत्रण के लिए 2016 में दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने जैसे फैसले शामिल हैं। 



इस खंडपीठ के तीसरे जज जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ 13 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। उन्होंने अयोध्या मामले से पहले भी कई अहम मामलों में फैसले दिए हैं, जिनमें केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को असंवैधानिक ठहराना, निजता को मौलिक अधिकार घोषित करना, दो बालिगों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना, व्यभिचार के संबंध में आइपीसी की धारा 497 को मनमानी व समानता के हक का उल्लंघन बताते हुए असंवैधानिक घोषित करना और इच्छामृत्यु का अधिकार जैसा फैसला शामिल है। 

चौथे जज जस्टिस अशोक भूषण 13 मई, 2016 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। वह कई अहम फैसले देने वाली पीठ में शामिल रहे हैं। इनमें इच्छामृत्यु का अधिकार, दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के बीच अधिकारों का मामला शामिल है। 
इस ऐतिहासिक फैसले को सुनाने वाले बेंच में पांचवे जस्टिस एस अब्दुल नजीर 17 फरवरी, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। उन्होंने निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने समेत कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। एक साथ तीन तलाक के मामले में जस्टिस नजीर ने अल्पमत का फैसला दिया था।

आज फैसले के दिन फैसला तो सबको पता है लेकिन एक उसी अयोध्या की पवित्र माटी की पैदाइश होने के कारण  उस फैसले के सन्दर्भ में कुछ बातें थीं जिन्हे आम जनमानस में पब्लिक डोमेन मे आनी चाहिए जिसके लिए ये छोटी सी मन की भावना बाहर आई।  

अभिषेक द्विवेदी
अयोध्या से 

Sunday, 6 October 2019





कांग्रेस : दो पाटन के बीच मे साबुत बचा न कोय!!


.....बात की शुरुआत बाबा कबीर के इस दोहे से करते हैं कि एक बार बाबा कबीर ने जीवन की आपाधापी पर लिखा था , "चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय, दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय॥"

ये बात इस के अलग के सन्दर्भ में रखें तो कुछ समय पहले लोकसभा चुनावों बाद एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा था कि दिसंबर तक कांग्रेस दो फाड़ में बंट जाएगी , तब उनका कहना शायद आज के वक़्त में भविष्यवाणी के हिसाब से सही लग रहा है। आज भारत की सबसे पुरातन पार्टी जिसने आज़ादी की लड़ाई में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था , उसके अंदरखाने बहुत सड़ांध फ़ैल चुकी है , इसी लिए कहना पड़ रहा है दो पाटन के बीच में , कांग्रेस में सगा न कोय। 



बात यहाँ कांग्रेस की हो रही है तो बात शुरू करने के पहले एक जानकारी मिल रही है राहुल गाँधी हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के ठीक पहले विदेश यात्रा पर निकल गए हैं , इन दोनों प्रदेशों के संगठन में आंतरिक कलह खुलकर सामने आ गयी हैं।


इस "कलह सीजन" की शुरुआत महाराष्ट्र चुनाव के दौरान से शुरू हुई , जब सबसे पहले महाराष्ट्र कांग्रेस में मजबूत स्तम्भ कृपाशंकर सिंह अपने को व्यथित महसूस करते हुए और अस्तित्व को बचाने के लिए पार्टी से अलग हुए ,सिंह के लिए कहा जाता है कि वे इंदिरा गांधी के कहने पर सक्रिय राजनीति में आये थे।कृपाशंकर सिंह 2004 की कांग्रेस सरकार में गृह राज्य मंत्री भी रह चुके थे।  इसके बाद जब टिकट बंट गया तब से  संजय निरुपम व्यथित हैं। इसी दौरान हरियाणा चुनाव में टिकट बंटवारे के पहले ही पार्टी में हाशिये  पर कर दिए गए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राहुल गाँधी के खेमे के माने जाने वाले अशोक तंवर ने आरोप लगाया कि टिकट बंटवारे में काफी धांधलियां हुईं हैं , उन्होंने कुमारी शैलजा और गुलाम नबी आज़ाद पर सीधा आरोप लगाया कि टिकट की "बिकवाली" हुई है , 5 करोड़ में टिकट बिके  हैं।  इसके बाद अशोक तंवर तो और भी आगे निकल गए , पार्टी की  सदस्य्ता से ही इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे के साथ तंवर ने सबसे बड़ा आरोप ये लगाया कि राहुल गांधी ने पिछले डेढ़ दशक में जिन नेताओं को आगे बढ़ाया उन्हें खत्म करने का षड्यंत्र किया जा रहा है, तंवर ने कहा कि राहुल गांधी के नजदीकी नेताओं की राजनीतिक हत्या की जा रही है, तंवर ने अपने साथ मुम्बई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम, झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ की राजनीतिक हत्या हो चुकी है कुछ की होने वाली है, तंवर ने गुलाम नबी आजाद पर 'गंदा खेल' खेलने का आरोप लगाते हुए कहा कि आजाद ने दी गई जिम्मेदारी का 'सौदा' कर लिया। 

दो दिनों पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तंवर ने कहा था कि हरियाणा कांग्रेस 'हुड्डा कांग्रेस' बन गई है,हालांकि टिकट बेचे जाने के आरोप पर तंवर ने कहा कि लेनदेन की जानकारी उन्हें नहीं है लेकिन ऐसे आरोप कई नेताओं ने लगाए हैं।  लेकिन एक गंभीर और अहम खबर इस व्यथा और नाराजगियों से छनकर सामने आ रही है। कांग्रेस "दोफाड़” हो गयी है – राहुल और सोनिया कांग्रेस में। तो क्या राहुल को अब के सोनिया के नजदीकी बुजुर्ग लोगों (नेताओं) ने सिर्फ इसलिए "फेल" करने की कोशिश में रोल अदा किया, क्योंकि वे राहुल के रहते अप्रसांगिक होने की तरफ बढ़ रहे थे और युवा नेता कांग्रेस का नेतृत्व ओढ़ने की तैयारी कर रहे थे ! 
संजय निरुपम ने दो दिन पहले जिस प्रेस वार्ता में अपनी व्यथा बताई उस में उन्होंने एक बात कही कि " जो लोग वहां बैठे हुए हैं , सोनिया जी के इर्द गिर्द , वो बायस्ड लोग हैं , उनकी न तो कोई पकड़ है जनता के बीच , ना ही कोई समझ है, कैसे पार्टी में एक एक को निपटाया जाए ये षड़यत्र कर रहे हैं। "

यहां देखा जाये तो राहुल जब अपने अध्यक्षयीय कार्यकाल में थे तत्समय  राहुल के काम करने के तरीके पर नजर दौड़ाएं तो साफ़ होता है कि वे कांग्रेस को लोकतांत्रिक तरीके से पुनर्जीवित करने की कोशिश रहे थे। ज़मीन से जुड़े लोगों और आम कार्यकर्ता की सलाह को फैसलों में शामिल करने की राहुल की कोशिश एक खुला सच है। इसी तरह टिकट वितरण में भी वे कार्यकर्ता की सलाह को शामिल करने पर जोर दे रहे थे। बुजुर्ग हो रहे या हो चुके नेता इससे विचलित थे। उन्हें लग रहा था कि इससे तो पार्टी में उन्हें कोइ पूछेगा तक नहीं। उन्हें यह बिलकुल गवारा नहीं था।

अब महाराष्ट्र और हरियाणा प्रदेश की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ी हुई है। जहां कांग्रेस पार्टी गुटबाजी में दो फाड़ हो गई है। एक ही पार्टी के कार्यकर्ता एक ही परिवार के दो अलग सदस्यों के लिए वफादारी दिखा रहे हैं। एक तरफ है सोनिया गांधी की ओल्ड कांग्रेस  तो दूसरी तरफ राहुल गांधी की न्यू कांग्रेस के कार्यकर्ता आमने सामने हैं, ऐसे में ये कहा जा सकता है की इस चुनाव का हश्र कांग्रेस का आलाकमान पहले ही जान रहा है , तभी तो भूपिंदर हुड्डा , गुलाम नबी आज़ाद और सोनिया के बेहद करीबी अहमद पटेल आपस में मंथन करते हुए हरियाणा में 14 सीट का हिसाब फिट कर रहे थे, मामला वायरल होने के बाद उनकी बोलती बंद थी।    


ये दिलचस्प बात है कि कांग्रेस की जो युवा ब्रिगेड आज राहुल गांधी के साथ है, इसे किसी और ने नहीं खुद सोनिया गांधी ने बनाया है पार्टी अध्यक्ष रहते। तब राहुल और यह सभी नेता काफी युवा थे। सोनिया ने इन्हें बेटों की तरह पार्टी के भीतर बहुत योजनाबद्ध तरीके से ताकत दी। लेकिन समय का फेर देखिये कि सोनिया के अध्यक्ष रहते हुए ही यह युवा नेता किनारे हो रहे हैं, इसका कारण है सोनिया गांधी का बुजुर्ग नेताओं पर ज़रुरत से ज्यादा निर्भर हो जाना। कांग्रेस की जैसी हालत है उसमें शायद यह उनकी मजबूरी भी है। अन्यथा सोनिया आज से दस-ग्यारह साल पहले अध्यक्ष के नाते जितनी ताकतवर थीं, उसमें इस तरह की संभावनाओं के लिए जगह ही नहीं थी।

खैर , यहां बहुत पुरानी अवधी कहावत याद आती है "धरा को प्रमाण यही तुलसी, जे फरा , सो झरा , जे बरा सो बुताना" , मतलब पेड़ में अगर फल जितनी तेज लगते हैं उतने ही तेज फल,पत्ती,फूल झड़ते भी हैं,जो आग जितनी तेज लगती है, उतने ही तेज बुझती भी है। सत्ता का दम्भ ऐसे ही होता है , इसलिए सत्ता को क्षणभंगुर माना जाना चाहिए, सोनिया गाँधी के खेमे के कांग्रेसी अभी भी सत्ता के उसी दिवास्वप्न में जी रहे हैं जो दस साल पहले थी , लेकिन सत्ता दस साल में कैसे छीनी गयी , उसे सीखना शायद भारतीय जनता पार्टी से भूल गए। ये सिर्फ गफलत है और इसी गफलत में कांग्रेस अभी भी जी रही है। 

अभिषेक द्विवेदी 
(पुरबिया बकैतबाज)

Friday, 4 October 2019


सत्ता के आगे विपक्ष का "संक्रमणकाल"...


उत्तर प्रदेश में जिस तरह की राजनीतिक  बयार  बह रही है, उसमे ये कहा जा सकता है कि सत्ता पक्ष फ्रंट फुट पर बैटिंग कर रहा है, विपक्ष के पास उस तेज बल्लेबाजी को रोकने के लिए न तो आरोपों की गुगली, न मुद्दों की स्पिन बॉलिंग, न ही उनके (सत्ता) के गलतियों की कैचिंग पॉवर है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य अगर देखें तो इस वक़्त सत्ता की कई सारी गलतियां ऐसी हैं ,जिनको लेकर विपक्ष उनको भुना सकता था,लेकिन कोई भी विपक्षी दल या नेता नही है जो उन मुद्दों को हवा देकर उसमे जान फूंक सके।

कल ही खत्म हुआ विधानसभा का विशेष सत्र इसकी एक बानगी था। जिस सदन में विपक्ष को जनहित के मुद्दों सवालों को उठाना था,उस सदन को उन्होंने बहिष्कृत कर दिया। उस सदन में अगर विपक्ष सत्ता पक्ष से महंगाई, पूर्वांचल में आई बाढ़ से तबाही और मौतें, लाचार कानून व्यवस्था, पुलिसिया उत्पीड़न , मोटर व्हीकल एक्ट के तहत होने वाली विसंगतियां और कठोर नियमों में पिस रही जनता की बातों के जायज़ सवाल पूछते तो सदन में उठा सवाल "ऑन रिकॉर्ड" होता ,और सत्ता को उसका जवाब देना भी पड़ता । लेकिन हुआ उसका बिल्कुल उलट, उस सदन का बहिष्कार करके विपक्ष सड़क पर छोटी सी भीड़ को इकट्ठा करके सरकार की मजबूत चूलें हिलाने की कोशिश में था, जो औंधे मुंह धड़ाम से गिरीं।

उत्तर प्रदेश में जिस समाजवादी पार्टी को सत्ता के मजबूत विपक्ष के रूप में देखा जा रहा था,वो समाजवादी पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है,हालिया बीते लोकसभा चुनाव में जहां उन्होंने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी बीएसपी से गठबंधन करके खुद के वोटबैंक में सेंध लगवा दी है,वो सेंध अब उसके नेतृत्व में लग गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव एक ऐसे कमजोर नेतृत्वकर्ता साबित हो रहे हैं जो अपने मुख्यमंत्रित्व काल और उस रुतबे से सत्ता जाने के लगभग ढाई साल बाद भी नही निकल पा रहे हैं। हां इस बीच उन्होंने लोकसभा चुनाव ने एक अजीब "केमेस्ट्री" का प्रयोग करने की कोशिश की जिसका "रिएक्शन" उनसे बड़ी कीमत ले गया। कहने की बात नही ये "प्रयोग" बिल्कुल "असंगत" और न्यायोचित नही था। उसका खामियाजा उन्हें अपना "कोर वोटर" खोकर भुगतना पड़ा। अभी भी अखिलेश यादव सोचते हैं कि सत्ता उन्हें "ट्वीट" करके ही मिलेगी,उन्हें ये सोचना चाहिए कि उनका "कोर वोटर" जो खलीलाबाद के किसी गांव गिरांव में,रसड़ा के किसी कछार में, दुद्धी या फूलपुर, सगड़ी के किसी मजरे में  किसानी करने वाला खेतिहर है। उसके लिए ट्वीट से ज्यादा उसके क्षेत्र में होने वाली जनसभा,रैली होती है , जो वो देखता है,सुनता है।

कांग्रेस में इस वक़्त अजब सी जल्दबाजी दिख रही है,प्रियंका गांधी जैसा उसका ब्रह्मास्त्र भी कुछ खास कारगर नही दिख रहा। इस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग उसने लोकसभा चुनाव के दौरान किया,लेकिन नतीजा उत्तर प्रदेश में मृतप्राय हो चुका कांग्रेस का संगठन,बूथ लेवल कार्यकर्ता इस संजीवनी से भी जिंदा नही हो पाया , लिहाजा उसकी परम्परागत अमेठी सीट हाथ से निकल गई, अब उस मुर्दा संगठन को जिंदा करने का जिम्मा प्रियंका गांधी वाड्रा ने उठाया है, ये समय के गर्भ में है वो कौन सा अचूक मंत्र होगा,जिसे प्रियंका अपने कार्यकर्ताओं को देंगी,क्योंकि लोकसभा चुनाव बीते 4 महीने हो चुके हैं, प्रदेश तो छोड़िए, जिला इकाई तक का गठन अभी तक नही हो पाया है। और अगले 20 दिन में विधानसभा की खाली हुईं 11 सीटों पर उपचुनाव है,हालांकि बुझे मन से ही सही कांग्रेस इस उपचुनाव में ताल ठोंक रही है। 

बहुजन समाज पार्टी का कुछ समय पहले गिरता हुआ ग्राफ कुछ उठता दिखाई पड़ रहा है,लेकिन बीएसपी आज भी अपने परम्परागत ढर्रे पर चल रही है, मुखिया मायावती को अब ये समझना चाहिए कि भाषण पढ़ने मात्र से जनता से जुड़ाव मुश्किल है, बदलते दौर में कम से कम मायावती ने ये सही समझा कि इस जुड़ाव के लिए "सोशल मीडिया" "ट्वीटबाजी" करना अनिवार्य है,लिहाजा उनका इस प्लेटफार्म पर आना कुछ हद तक समय के लिहाज से सही है,लेकिन जनता से जुड़ाव बहुत दूर की कौड़ी लगती है।

आने वाले उपचुनावों के लिए जिस तरह विपक्ष में धार होनी चाहिए वो दिखाई नही पड़ती,वहीं भारतीय जनता पार्टी इस "गेम" में सबसे आगे दौड़ती नजर आती है, राष्ट्रवाद का तड़का, हिंदुत्व की चाशनी, गाय,गोबर,गौमूत्र ,भ्रष्टाचार मुक्त समाज के जुमलों में अभी भी जनता का विश्वास नजर आता है, जिसके "दम्भ" में बीजेपी की सत्ता का आधार मजबूत दिखाई पड़ता है। लेकिन वही बीजेपी तब कमजोर दिखाई पड़ती है,जब नारी शक्ति और महिला सशक्तिकरण की बात करती है तो उसके दामन पर कुलदीप सिंह सेंगर,स्वामी चिन्मयानंद जैसे कुत्सित ,कुकृत्य एक दाग छोड़ जाते हैं, अगर यहां यही विपक्ष इन मुद्दों के प्रति "रणछोड़" साबित न हुआ होता, और उन मुद्दों को सदन में उछालता तो गेंद जरूर "हिटविकेट" होती। 

पुरबिया बकैतबाज.....

Sunday, 6 December 2015



एक बार फिर से "अयोध्या"......

बरसों की बरसी आज फिर आई
सबको हमारी तुम्हारी याद आई
लगा शहर में ये कैसा मेला है
ओह! शायद आज ,
सालाना उर्स "रामलला" का है ???

संगीनों के साये में मनाने फिर से
भक्ति, उन्माद , शौर्य और ग़म
फिर से जुट रहे "राम" और "रहीम"
के ठेकेदार ,
आज फिर अपनी भुजाएं फड़काकर
देंगे तुमको अपने फिर वादे और इरादे ..
शहर की गलियां आज भी एक वीराने में हैं
"लौटन"और "ज़मील" आज भी बैठे हैं
नुक्कड़ की "दरे" वाली
"छींके" वाली एक प्याली ,
पीने को .....

मगर आज कुछ अलग सा है मोहल्ला
मोहल्ले में ये सफेदपोश कौन है
और दूसरे कोने में खड़ा वो संगीनपोश
आज कहाँ से आया ...!!
ना तुम्हारा है , ना हमारा है
शहर का नज़ारा सबका है
उस नुक्कड़ की कोने से
इस मन्दिर के चौबारे तक
सारी सीमाएं इंसानियत की हैं..

मगर ए खाकी और खद्दर वालों
सुन लो गौर से ,
इस गंगा और जमुना से "पाक"
शहर में मत घोलो जहर ,
हलाहल और विष ,
यहां है जुम्मन की खटिया भी,
यहां लगती है खेलावन सिंह की
महफ़िल भी ...!!

मज़लिस, अज़ान...कथा और भागवत
यहां होते सभी एक ही रिवाज़ से
यहां दिगम्बर भी हैं राम और परशुराम भी
यहां हैं दरगाह और ईदगाह भी
दुर्गापूजा की देवियों पर करते है
पुष्पवर्षा .....चौक वाले "इमाम" भी...!!

इतने पवित्र शहर की आब -ओ हवा में
मत घोलो रंजिश , नापाक इरादों वालो
ख़ाक हो जाओगे इंसानियत को
इंसानियत से लड़ाने वालों ...
आओ खाओ पियो ,
सैर करो निकल जाओ ,
बस इतने में ही सुकून करो
ना तुम्हारा है , ना उसका है
ये प्यारा शहर हमारा है ...
ये प्यारा शहर हमारा है .....!!!

जो न लड़ा गया , जिसे न जीता गया
ये जुड़वां शहर निशानी हैं,
राम से लेकर नवाबों तक
शहर की हर ईंट में छाप पुरानी है
सरयू के घाट से लेकर ..
चौक के घड़ियाल तक ,
हर निशानी में छाप पुरानी है !!
ये प्यारा शहर हमारा है ..
ये प्यारा शहर हमारा है ...!!!
"अयोध्या" आज फिर याद आई  ...!!

--फ़ैज़ाबादी अलफ़ाज़ .....

पुरबिया बकैतबाज़ ! 

Monday, 14 September 2015



हिंदी का सम्मान ………………। 


हिंदी तुम हो राष्ट्र का मान ,
तुम हो सर्व समाज की शान ..!!
तुमसे ही है समाज की धारा ,
तुमसे है कल और आज हमारा ..!!

हिंदी का जब से ज्ञान हुआ ,
तब से सब आसान हुआ ...
क्या लिखना ,पढ़ना क्या बोलें ,
इसी से सब  सम्मान हुआ !!

जबसे संस्कार में तुम आई ,
तबसे ज्ञान की ज्योति पायी ..
हिंदी से सबका है चलना ,
उठ के चलना और पकड़ना ..

मगर हाय ! 
ये कैसी "मॉडर्न ता "...
भेड़ चाल में भूल गए मौलिकता ..
हिंदी से न रही नैतिकता ,
भूल गए सारी सार्थकता ..

भाषा के सम्मान हेतु ,
चलो बनाएं एक सेतु ,
प्राच्य काल के इस जननी का
हो उद्धार करें ऐसा कुछ !!

सर्व जन और सर्व सुलभ हो
हिंदी की ऐसी सदगति हो ,
भाषा के सदा उत्थान के लिए ,
फिर से नया एक मार्ग बनाये ...!!!




.........आज हिंदी दिवस पर भावनाएं समर्पित !!!!!!

Saturday, 12 September 2015

"इधर बीच कुछ लिखने की आदत सी हो रही है , बरबस उंगलिया कीपैड पर लड़खड़ाने लगती है , और कुछ उलटी सीधी लाइने जोड़ने की कोशिश करता हूँ , लिहाज़ा कुछ बनी, कुछ अन बनी सी पंक्तियाँ जुड़ जाती हैं आज एक बंधू ने सलाह दी की इसको सबके सामने लाओ , लिहाजा बस ऐसे ही सोचा की इन्हे एक प्लेटफॉर्म तो देना बनता ही है , नहीं तो ये इनका अपमान होगा , भाषा का अपमान होगा , और साहित्य का भी " .... 

तो ये हैं कुल जमा तीन कवितानुमा भावनाएं हैं , जो आपके सामने हैं ....... 


1 _ये एक अनजान प्रेमिका के लिए शायद ....... !

ये मुस्कराहट ये शोखी ...कहीं कुछ कहना चाहते हैं ..ये खुले गेसू , ये लटें  मत समेटो ....ये पुरवाई में बह जाना चाहते हैं ...
तुम्हारे सुर्ख होठों से झांकते तुम्हारे वो अधकटे वाले छोटे मोती , जिन्हें तुम छिपाती हो ..
वो भी आज़ादी चाहते हैं ..… 
इन आजादियों और शोखियों को मत छुपाना ,ये पर लगाकर उड़ जाना चाहते हैं .......!!
इन आँखों में अभी भी बहुत अनकही बातें हैं ,इन्हें निकल जाने दो ...
और हाँ वो आँखों के किनारे वाले करीने से जो अश्क निकलते हैं ,उन्हें बह जाने दो ....
तुम्हारी वो खिलखिलाहट वाली मुस्कराहट और वो अल्हड़पन ना जाने क्यों अभी भी कहीं सुनाई देती है ...
ढूंढता हूँ उन्हें कहीं किसी ओर से  दिखाई दे जाए शायद ..
शायद किसी मेट्रो पर ,या किसी चौक पर ...या शायद मंडी हाउस के वो गोलचक्कर वाली किसी सड़क पर ....
खैर ये तो इक बहाना था ,असल में तुम हो ही वैसी जो जाते जाते जाओगी ,
बस वो बीते लम्हे या वो सेकेण्ड वाले मिनट के पैक्स शायद ही फिर से आएंगे .........!!!!
बस ये मुस्कराहट और शोखी कुछ कहना चाहते हैं ........!!!!

2 _रात के बीतने और जवां होती सुबह , और उसपर बोझिल आँखें … 

रात ढल चुकी है , सुबह जवां होने की ओर है ..
चकोर भी अब खामोश है , कोयल की कूक नाचे मयूर है ...!!
खुमारी भी अपने मादकता से आगोश में समेट लेगी ..
रात का नशा दिन में सुरूर चढ़ाएगा ...
आँखों का गुरूर खुद ब खुद बुझ जाएगा ...
क्या किया इस रात में , क्या पता ..
हाँ वो की बोर्ड की खनखनाहट ,
और माउस की सर सराहट  ...
कुछ हुआ तो जरूर था ,
चार ब्रेकिंग और चन्द खबरें ,कुर्सी पर पसरा शरीर ..
चार लाइनों में सिमटी खबरों की रुबाइयाँ ..
और दफ्तर में मिनटों में बनने बिगड़ने वाली रूसवाइयां ....
तन्हा तो नहीं ,लेकिन लोगों के बीच तीखी लगने वाली तन्हाईयाँ ....
बस यही तो था , जो हुआ था ...
अकेला ही था , अकेला सा
जीता हूँ इस उम्मीद में , मिलोगी तुम
बनोगी रहगुज़र , रहगुज़ारी का भत्ता तो तुमसे ही होगा अदा ......
रात गुज़र चुकी है , सुबह जवां होने को है ...!!!!!


3_छोटे सपने कहीं से मिला , आगे खुद ब खुद बनता गया ………… !


छोटे छोटे सपने , किताबी पलको में समाये हैं ...
आशाएं पंख लगा के उड़ जाने को फैलाये हैं ...
कल बनाने को आज से ही कदम बढाए हैं ...
छोटे छोटे सपने .........!!
कुछ पाने और कुछ कर गुजरने की चाहत ऐसी ,
कि हर ख्वाहिश पर दम निकलता है ...
ख्वाहिशों को पंख लगाकर ,परवाज़ देने की चाहत है ..
छोटे छोटे सपने ........!!!
जब देखा , पीछे क्या छूटा ....
वो गलियां वो चौबारे छूटे , मिटटी के वो मेड़ भी छूटे ..
गाँव का पनघट , गांव की चौखट , गाँव का  वो खलिहान भी छूटा ....
छोटे छोटे सपने .......!!!!
गांव के फैले चौबारे से आ पहुंचे कंक्रीट के जंगल ....
मानवता के मूल्यों से ऊपर , तेज़ निकलती दिनचर्या से   होकर ..
रोज़ बदलती , रोज़ सिकुड़ती ,
रोज़ नए ये रंग दिखाती ,
भाग रहे इस जीवन पथ पर .....
छोटे छोटे सपने .......!!!!!
चल रहे हैं , चलते रहेंगे जीवन के इस  अग्निपथ पर ...
सतत् क्रियाशील श्रम के बल पर ,देंगे इस समाज को धारा ...
जैसे गोमुख से गंगा बन , बूँद बन जाती अथाह जलधारा ...
छोटे छोटे सपने ......!!!!!!!!!



Friday, 8 August 2014


"सो रहा समाजवाद" ........?

पिछले कुछ दिनों से ऐसा क्यों लग रहा है कि जिस राज्य में समाजवाद व्यवस्था को आधार बनाकर सत्ता चल रही है असल में वहां  तथाकथित "समाजवाद" जैसा कुछ नहीं है ऐसा इसी व्यवस्था के साथ ही क्यों होता है कि जब समाजवाद की सत्ता आती है तभी यहाँ सब कुछ असमाजवादी प्रथा चल जाती है हालाँकि मै ये नहीं कह रहा हूँ की पूर्ववर्ती सरकारें दूध की धुली  हुईं थी या उनके शासन काल में "रामराज्य " था  लेकिन उन शासनों में कम से कम प्रसाशन स्तर पर हीला हवाली जैसा काम इस हद से कम ही था  ।

2012 में प्रदेश के चुनावों में समाजवाद के झंडाबरदार रहे माननीय अखिलेश जी  "टीपू भइया" ने जिस तरीके सत्ता में पुनः आने की जिजीविषा को जगाया था और ये दिखाने की कोशिश की थी की अब वो पहले वाली समाजवादी प्रथा नही चलेगी और अब समाजवादी नए रंग रोगन में रंगी नजर आएगी उस समय उन्होंने एक बानगी भी दिखाई थी कि चुनावो के ठीक पहले जिस तरीके उन्होंने बाहुबली डी पी यादव को पार्टी में नहीं लेकर अपने ही पुरातन लोहियावादियो की नाराजगी मोल ली थी ऐसे में वाकई ये लगा था कि अब "समाजवाद" अपने फॉर्म में आ जायेगा सत्ता आई  और खुशियो के बुलबुले इस तरीके दिखाए गए और इसके ठीक दस दिन के भीतर ही समाजवादियो की हुड़दंगी सबके सामने आने लगी । उन गलतियों को ढकने का एक तरीका ये दिखा की जनता को टैबलेट लैपटॉप ,  कन्या धन जैसी  योजनाओ से लाद  दिया गया ।  लेकिन प्रशासनिक स्तर का काम धरातल पर नहीं उतर पाया और परिणामतः आज तक समाजवादियों का केवल स्याह चेहरा ही दिखा है या दिख रहा है |

खैर मुद्दे की बात ये है की इस वक्त प्रदेश में जिस तरीके से जरायम के नए नए इतिहास लिखे जा रहे हैं और उनके इतिहास में भी आप उनके तरीको को देखिये तो ये पता चलता है कि प्रशासन का खौफ और ब्यूरोक्रेसी की ताकत के साथ पुलिस की कार्यशैली सभी पर सवालिया निशान लग रहे हैं । अपराधो में भी अगर बात करें तो महिला अपराधों की तो बाढ़ सी आ गयी है और साम्प्रदायिक सौहार्द अब बीते ज़माने की बात सी लगने लगी हैआज प्रदेश का हर इलाका हर जिला एक खौफ और साम्प्रदायिक उन्माद  के आग  में सुलग  है ।

पहले महिला अपराधों की बात करें तो बीते छ महीनो में वीभत्स्ता की हद तक अपराध हुए हैं । इन्ही अपराधों में कुछ का नाम लें तो पहले तो ताज़ा मामला मेरठ के  खरखौदा में एक लड़की के साथ कथित गैंगरेप और धर्मान्तरण का मामला चल रहा है जिसमे पुलिस की विवेचना पर सवालिया निशान  बने हुए हैं पिछले  26 -27 मई को बदायूं के कटरा सादातगंज में दो बहनो के साथ हुए गैंगरेप के बाद उनके पेड़ से लटकाकर हत्या इसी के एक हफ्ते के भीतर ही देवरिया में नव दंपत्ति की पेड़ से लटकाकर हत्या उसी के दो दिन के भीतर सीतापुर में नाबालिग लड़की को पेड़ से लटकाकर हत्या इस घटना के पंद्रह दिनों के भीतर हमीरपुर में थाने के अंदर महिला से तीन कॉन्स्टेबलों ने एसएचओ के साथ मिलकर कथित रेप किया  ,जिसमे महिला अपने पति को छुड़ाने सुमेरपुर पुलिस थाने  आई थी  इसमें तो बदायूं मामले की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक भर्त्सना की गयी थी ।  इन घटनाओ के बीच अगर लखनऊ के मोहनलालगंज में पिछले जुलाई  महीने की 17 तारीख की बात न करें तो बात ही नही पूरी होगी इस मामले में सबसे बड़ी लापरवाही बात निकल कर आती है कि पूरे लखनऊ की सुरक्षा आपने जिस समारोह को सकुशल बनाने के लिए कर दी, वीभत्स्ता  की हद का अपराध भी उसी इलाके में होता है । बिल क्लिंटन की आवभगत में जुटा प्रशासनिक अमला इस अपराध से अनजान बना था और एक महिला की बड़ी निर्दयता से हत्या हो जाती है जिसकी गूँज सड़क से संसद तक सुनाई पड़ी थी और अभी भी ये मामला सरकार की नाक का बाल का बना हुआ यही क्योंकि इसकी विवेचना अभी स्पष्ट नहीं  है ।

अब बात कर लें प्रदेश की बिगड़ती साम्प्रदायिक सौहार्द की तो अभी ताज़ा सहारनपुर का मामला ही लें तो पिछले 25 - 26 जुलाई को भड़की हिंसा का खौफ अभी तक मौजूद है इस हिंसा में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से तीन की मौत बताई गयी उससे पहले 27 जून को मुरादाबाद के कांठ में भी हिंसा हुयी हिंसा को साम्प्रदायिकता का रंग देने के लिए बी जे पी भी कहीं पीछे नहीं रही । और पिछले साल अगस्त के आखिरी में हुयी मुजफ्फरनगर की साम्प्रदायिक हिंसा अभी भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली बागपत मुजफ्फरनगर में अपने निशान नही छोड़ा है । इसके आंच में आये पीड़ित अभी तक शरणार्थी बने हुए हैं ।

उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ बर्बर अपराधों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा हैलेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दावा कर रहे हैं कि उनके राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति देश के कई अन्य हिस्सों की तुलना में बेहतर है।सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले पर चौतरफा हमलों के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं ने मीडिया पर निशाना साधा और अजीबोगरीब दलीलें पेश करते हुए कहा कि कभी-कभी जब लड़कियों और लड़कों के बीच संबंध सामने आ जाते हैंतब इसे 'बलात्कार का नाम दे दियाजाता है।

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने बदायूं में दो लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले पर मीडिया में हो रही कवरेज को लेकर अपनी नाखुशी छिपाई नहीं और पत्रकारों से कहाआप अपना काम कीजिए और हमें अपना काम करने दीजिए।

सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने इस तरह के अपराधों के लिए टीवी चैनलों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि वे नग्नता और हिंसा दिखा रहे हैं। रामगोपाल यादव ने मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा कि इस तरह के मामले राजस्थानमध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी हो रहे हैंलेकिन उनको नहीं दिखाया जा रहा है।
इन घटनाओं पर मौजूदा केंद्र सरकार भी हरकत में है और सात अगस्त को संसद में प्रदेश की कानून व्यवस्था का मामला उठा और  सांप्रदायिक हिंसा पर संसद में आंकड़े पेश हुए  यूपी में सबसे अधिक 32 मामले सांप्रदायिक हिंसा के हैं ऐसा आंकड़ों में कहा गया है ।

ये सारी  बातें एक प्रदेश के सेहत के लिए अच्छी नहीं कही  जा सकती क्योंकि एक ऐसा प्रदेश जिसका राष्ट्रीय परिदृश्य में अलग पहचान हो और उस पर "समाजवाद" की कोरी ही सही लेकिन एक सभ्य समाज को दिशा देने वाली व्यवस्था का राज हो उस प्रदेश की ऐसी हालत उसके धमनियों में एक विशेष प्रकार का खौफ का ही संचार करता है । और ये खौफ उसके प्रजा के लिए हमेशा ही टीस  देता रहेगा और प्रजा से भी यही गुहार है की ,
सहमे रहिये क्योंकि "समाजवाद सो रहा है" …………………  

पुरबिया बकैतबाज...