Saturday, 12 September 2015

"इधर बीच कुछ लिखने की आदत सी हो रही है , बरबस उंगलिया कीपैड पर लड़खड़ाने लगती है , और कुछ उलटी सीधी लाइने जोड़ने की कोशिश करता हूँ , लिहाज़ा कुछ बनी, कुछ अन बनी सी पंक्तियाँ जुड़ जाती हैं आज एक बंधू ने सलाह दी की इसको सबके सामने लाओ , लिहाजा बस ऐसे ही सोचा की इन्हे एक प्लेटफॉर्म तो देना बनता ही है , नहीं तो ये इनका अपमान होगा , भाषा का अपमान होगा , और साहित्य का भी " .... 

तो ये हैं कुल जमा तीन कवितानुमा भावनाएं हैं , जो आपके सामने हैं ....... 


1 _ये एक अनजान प्रेमिका के लिए शायद ....... !

ये मुस्कराहट ये शोखी ...कहीं कुछ कहना चाहते हैं ..ये खुले गेसू , ये लटें  मत समेटो ....ये पुरवाई में बह जाना चाहते हैं ...
तुम्हारे सुर्ख होठों से झांकते तुम्हारे वो अधकटे वाले छोटे मोती , जिन्हें तुम छिपाती हो ..
वो भी आज़ादी चाहते हैं ..… 
इन आजादियों और शोखियों को मत छुपाना ,ये पर लगाकर उड़ जाना चाहते हैं .......!!
इन आँखों में अभी भी बहुत अनकही बातें हैं ,इन्हें निकल जाने दो ...
और हाँ वो आँखों के किनारे वाले करीने से जो अश्क निकलते हैं ,उन्हें बह जाने दो ....
तुम्हारी वो खिलखिलाहट वाली मुस्कराहट और वो अल्हड़पन ना जाने क्यों अभी भी कहीं सुनाई देती है ...
ढूंढता हूँ उन्हें कहीं किसी ओर से  दिखाई दे जाए शायद ..
शायद किसी मेट्रो पर ,या किसी चौक पर ...या शायद मंडी हाउस के वो गोलचक्कर वाली किसी सड़क पर ....
खैर ये तो इक बहाना था ,असल में तुम हो ही वैसी जो जाते जाते जाओगी ,
बस वो बीते लम्हे या वो सेकेण्ड वाले मिनट के पैक्स शायद ही फिर से आएंगे .........!!!!
बस ये मुस्कराहट और शोखी कुछ कहना चाहते हैं ........!!!!

2 _रात के बीतने और जवां होती सुबह , और उसपर बोझिल आँखें … 

रात ढल चुकी है , सुबह जवां होने की ओर है ..
चकोर भी अब खामोश है , कोयल की कूक नाचे मयूर है ...!!
खुमारी भी अपने मादकता से आगोश में समेट लेगी ..
रात का नशा दिन में सुरूर चढ़ाएगा ...
आँखों का गुरूर खुद ब खुद बुझ जाएगा ...
क्या किया इस रात में , क्या पता ..
हाँ वो की बोर्ड की खनखनाहट ,
और माउस की सर सराहट  ...
कुछ हुआ तो जरूर था ,
चार ब्रेकिंग और चन्द खबरें ,कुर्सी पर पसरा शरीर ..
चार लाइनों में सिमटी खबरों की रुबाइयाँ ..
और दफ्तर में मिनटों में बनने बिगड़ने वाली रूसवाइयां ....
तन्हा तो नहीं ,लेकिन लोगों के बीच तीखी लगने वाली तन्हाईयाँ ....
बस यही तो था , जो हुआ था ...
अकेला ही था , अकेला सा
जीता हूँ इस उम्मीद में , मिलोगी तुम
बनोगी रहगुज़र , रहगुज़ारी का भत्ता तो तुमसे ही होगा अदा ......
रात गुज़र चुकी है , सुबह जवां होने को है ...!!!!!


3_छोटे सपने कहीं से मिला , आगे खुद ब खुद बनता गया ………… !


छोटे छोटे सपने , किताबी पलको में समाये हैं ...
आशाएं पंख लगा के उड़ जाने को फैलाये हैं ...
कल बनाने को आज से ही कदम बढाए हैं ...
छोटे छोटे सपने .........!!
कुछ पाने और कुछ कर गुजरने की चाहत ऐसी ,
कि हर ख्वाहिश पर दम निकलता है ...
ख्वाहिशों को पंख लगाकर ,परवाज़ देने की चाहत है ..
छोटे छोटे सपने ........!!!
जब देखा , पीछे क्या छूटा ....
वो गलियां वो चौबारे छूटे , मिटटी के वो मेड़ भी छूटे ..
गाँव का पनघट , गांव की चौखट , गाँव का  वो खलिहान भी छूटा ....
छोटे छोटे सपने .......!!!!
गांव के फैले चौबारे से आ पहुंचे कंक्रीट के जंगल ....
मानवता के मूल्यों से ऊपर , तेज़ निकलती दिनचर्या से   होकर ..
रोज़ बदलती , रोज़ सिकुड़ती ,
रोज़ नए ये रंग दिखाती ,
भाग रहे इस जीवन पथ पर .....
छोटे छोटे सपने .......!!!!!
चल रहे हैं , चलते रहेंगे जीवन के इस  अग्निपथ पर ...
सतत् क्रियाशील श्रम के बल पर ,देंगे इस समाज को धारा ...
जैसे गोमुख से गंगा बन , बूँद बन जाती अथाह जलधारा ...
छोटे छोटे सपने ......!!!!!!!!!



3 comments:

  1. शानदार लिखे हो....अच्छा प्रयास....बस जो लिखों हो वो करना मत

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  2. Replies
    1. मिश्रा जी धन्यवाद .....

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