Friday, 8 August 2014


"सो रहा समाजवाद" ........?

पिछले कुछ दिनों से ऐसा क्यों लग रहा है कि जिस राज्य में समाजवाद व्यवस्था को आधार बनाकर सत्ता चल रही है असल में वहां  तथाकथित "समाजवाद" जैसा कुछ नहीं है ऐसा इसी व्यवस्था के साथ ही क्यों होता है कि जब समाजवाद की सत्ता आती है तभी यहाँ सब कुछ असमाजवादी प्रथा चल जाती है हालाँकि मै ये नहीं कह रहा हूँ की पूर्ववर्ती सरकारें दूध की धुली  हुईं थी या उनके शासन काल में "रामराज्य " था  लेकिन उन शासनों में कम से कम प्रसाशन स्तर पर हीला हवाली जैसा काम इस हद से कम ही था  ।

2012 में प्रदेश के चुनावों में समाजवाद के झंडाबरदार रहे माननीय अखिलेश जी  "टीपू भइया" ने जिस तरीके सत्ता में पुनः आने की जिजीविषा को जगाया था और ये दिखाने की कोशिश की थी की अब वो पहले वाली समाजवादी प्रथा नही चलेगी और अब समाजवादी नए रंग रोगन में रंगी नजर आएगी उस समय उन्होंने एक बानगी भी दिखाई थी कि चुनावो के ठीक पहले जिस तरीके उन्होंने बाहुबली डी पी यादव को पार्टी में नहीं लेकर अपने ही पुरातन लोहियावादियो की नाराजगी मोल ली थी ऐसे में वाकई ये लगा था कि अब "समाजवाद" अपने फॉर्म में आ जायेगा सत्ता आई  और खुशियो के बुलबुले इस तरीके दिखाए गए और इसके ठीक दस दिन के भीतर ही समाजवादियो की हुड़दंगी सबके सामने आने लगी । उन गलतियों को ढकने का एक तरीका ये दिखा की जनता को टैबलेट लैपटॉप ,  कन्या धन जैसी  योजनाओ से लाद  दिया गया ।  लेकिन प्रशासनिक स्तर का काम धरातल पर नहीं उतर पाया और परिणामतः आज तक समाजवादियों का केवल स्याह चेहरा ही दिखा है या दिख रहा है |

खैर मुद्दे की बात ये है की इस वक्त प्रदेश में जिस तरीके से जरायम के नए नए इतिहास लिखे जा रहे हैं और उनके इतिहास में भी आप उनके तरीको को देखिये तो ये पता चलता है कि प्रशासन का खौफ और ब्यूरोक्रेसी की ताकत के साथ पुलिस की कार्यशैली सभी पर सवालिया निशान लग रहे हैं । अपराधो में भी अगर बात करें तो महिला अपराधों की तो बाढ़ सी आ गयी है और साम्प्रदायिक सौहार्द अब बीते ज़माने की बात सी लगने लगी हैआज प्रदेश का हर इलाका हर जिला एक खौफ और साम्प्रदायिक उन्माद  के आग  में सुलग  है ।

पहले महिला अपराधों की बात करें तो बीते छ महीनो में वीभत्स्ता की हद तक अपराध हुए हैं । इन्ही अपराधों में कुछ का नाम लें तो पहले तो ताज़ा मामला मेरठ के  खरखौदा में एक लड़की के साथ कथित गैंगरेप और धर्मान्तरण का मामला चल रहा है जिसमे पुलिस की विवेचना पर सवालिया निशान  बने हुए हैं पिछले  26 -27 मई को बदायूं के कटरा सादातगंज में दो बहनो के साथ हुए गैंगरेप के बाद उनके पेड़ से लटकाकर हत्या इसी के एक हफ्ते के भीतर ही देवरिया में नव दंपत्ति की पेड़ से लटकाकर हत्या उसी के दो दिन के भीतर सीतापुर में नाबालिग लड़की को पेड़ से लटकाकर हत्या इस घटना के पंद्रह दिनों के भीतर हमीरपुर में थाने के अंदर महिला से तीन कॉन्स्टेबलों ने एसएचओ के साथ मिलकर कथित रेप किया  ,जिसमे महिला अपने पति को छुड़ाने सुमेरपुर पुलिस थाने  आई थी  इसमें तो बदायूं मामले की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक भर्त्सना की गयी थी ।  इन घटनाओ के बीच अगर लखनऊ के मोहनलालगंज में पिछले जुलाई  महीने की 17 तारीख की बात न करें तो बात ही नही पूरी होगी इस मामले में सबसे बड़ी लापरवाही बात निकल कर आती है कि पूरे लखनऊ की सुरक्षा आपने जिस समारोह को सकुशल बनाने के लिए कर दी, वीभत्स्ता  की हद का अपराध भी उसी इलाके में होता है । बिल क्लिंटन की आवभगत में जुटा प्रशासनिक अमला इस अपराध से अनजान बना था और एक महिला की बड़ी निर्दयता से हत्या हो जाती है जिसकी गूँज सड़क से संसद तक सुनाई पड़ी थी और अभी भी ये मामला सरकार की नाक का बाल का बना हुआ यही क्योंकि इसकी विवेचना अभी स्पष्ट नहीं  है ।

अब बात कर लें प्रदेश की बिगड़ती साम्प्रदायिक सौहार्द की तो अभी ताज़ा सहारनपुर का मामला ही लें तो पिछले 25 - 26 जुलाई को भड़की हिंसा का खौफ अभी तक मौजूद है इस हिंसा में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से तीन की मौत बताई गयी उससे पहले 27 जून को मुरादाबाद के कांठ में भी हिंसा हुयी हिंसा को साम्प्रदायिकता का रंग देने के लिए बी जे पी भी कहीं पीछे नहीं रही । और पिछले साल अगस्त के आखिरी में हुयी मुजफ्फरनगर की साम्प्रदायिक हिंसा अभी भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली बागपत मुजफ्फरनगर में अपने निशान नही छोड़ा है । इसके आंच में आये पीड़ित अभी तक शरणार्थी बने हुए हैं ।

उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ बर्बर अपराधों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा हैलेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दावा कर रहे हैं कि उनके राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति देश के कई अन्य हिस्सों की तुलना में बेहतर है।सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले पर चौतरफा हमलों के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं ने मीडिया पर निशाना साधा और अजीबोगरीब दलीलें पेश करते हुए कहा कि कभी-कभी जब लड़कियों और लड़कों के बीच संबंध सामने आ जाते हैंतब इसे 'बलात्कार का नाम दे दियाजाता है।

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने बदायूं में दो लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले पर मीडिया में हो रही कवरेज को लेकर अपनी नाखुशी छिपाई नहीं और पत्रकारों से कहाआप अपना काम कीजिए और हमें अपना काम करने दीजिए।

सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने इस तरह के अपराधों के लिए टीवी चैनलों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि वे नग्नता और हिंसा दिखा रहे हैं। रामगोपाल यादव ने मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा कि इस तरह के मामले राजस्थानमध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी हो रहे हैंलेकिन उनको नहीं दिखाया जा रहा है।
इन घटनाओं पर मौजूदा केंद्र सरकार भी हरकत में है और सात अगस्त को संसद में प्रदेश की कानून व्यवस्था का मामला उठा और  सांप्रदायिक हिंसा पर संसद में आंकड़े पेश हुए  यूपी में सबसे अधिक 32 मामले सांप्रदायिक हिंसा के हैं ऐसा आंकड़ों में कहा गया है ।

ये सारी  बातें एक प्रदेश के सेहत के लिए अच्छी नहीं कही  जा सकती क्योंकि एक ऐसा प्रदेश जिसका राष्ट्रीय परिदृश्य में अलग पहचान हो और उस पर "समाजवाद" की कोरी ही सही लेकिन एक सभ्य समाज को दिशा देने वाली व्यवस्था का राज हो उस प्रदेश की ऐसी हालत उसके धमनियों में एक विशेष प्रकार का खौफ का ही संचार करता है । और ये खौफ उसके प्रजा के लिए हमेशा ही टीस  देता रहेगा और प्रजा से भी यही गुहार है की ,
सहमे रहिये क्योंकि "समाजवाद सो रहा है" …………………  

पुरबिया बकैतबाज...



Sunday, 1 June 2014


एक और पीपली लाइव जारी है .......


बात कहने के पहले यहाँ पीपली लाइव का नाम इस लिए आया क्योंकि मौजूदा ''एक प्रदेश'' की सरकार के  ''उत्तम प्रदेश'' में  अक्सर पीपली लाइव देखने को मिल रहे हैं और यही इस प्रदेश का दुर्भाग्य भी है ।  
सरकारी मरहम कैसा होता है क्या आपको पता है , शायद पता हो अगर नहीं पता तो जान लीजिये चंद रुपयों की सोंधी महक सरकारी मरहम होता है , इसके बारे में तब और ज्यादा पता चलता है  जब कहीं अनहोनी हो जाती है , जैसा कुछ इस वक्त बदायूं के कटरा सआदतगंज मे हो रहा है , पिछले 28 से वहाँ का मंजर किसी फिल्मी ''पीपली लाइव''  जैसा ही है , जहाँ सफेदपोश और लालफीताशाह अपनी हाजिरी लगाने के लिए  दस्तक दे रहे हैं ,और इसके साथ ही उस मुलाकातों का लाइव विश्लेषण यानी "पोस्टमार्टम''  भी अनवरत जारी है  ,क्योंकि  घटना थी दो बहनो की अस्मत लूटने के बाद की गयी जघन्य हत्या की । 


इस घटना ने जहाँ भारतीय मीडिया को एक मुद्दा दे  दिया था वहीं अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भी इस खबर को जबरदस्त मुद्दा बनाकर कवर कर रही है  ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस घटना को भयावह माना  है  ,  इस घटना की वीभत्स्ता आप इस अंदाजन लगाइये की दो बहनो के साथ पहले तो गैंगरेप होता है {जैसा की अब ख़बरेंआई  हैं}  आरोपियों ने जुर्म कबूला है और फिर इन लड़कियों की हत्या की जाती है , फिर इसके बाद भी दरिंदो का जी नहीं भरा तो इन्होने उनके शव को पेड़ से लटका दिया , आप अगर इस घटना के वीडियो फुटेज को देखें तो यकीनन आप एक पल को सिहर जरूर जायेंगे  , और उनके सामने बैठे हैं इस घटना का दंश झेलने वाले परिवारीजन और गाँव वाले । इस घटना का  वहशियाना अंदाज इस घटना को कहीं और इशारा करता है , क्योंकि सामान्यतया किसी कामांध व्यक्ति का जुर्म इस कदर, और इतना करने की हिम्मत नहीं देता । 

इस घटना के बाद सूबे की कानून व्यवस्था को लेकर समाजवादी पार्टी की सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर बनी हुई है।  देश के तमाम बड़े नेता एक-एक करके बदायूं पहुंच कर पीडित परिवार से मिल रहे हैं।  शनिवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और निर्वतमान लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार पीडित परिवार से मिलने गई। 
तो रविवार को बसपा प्रमुख मायावती, सपा सांसद धर्मेद्र यादव पीडित परिवार से मिले।  मायावती ने पीडित परिवार को न्याय दिलाने के लिए धरने पर बैठने तक की धमकी दे दी।  करीब सात वर्षों से किसी भी पीडित व्यक्ति का दुखदर्द जानने के लिए लखनऊ और दिल्ली से बाहर ना जाने वाली मायावती के इस ऐलान के बाद केंद्र सरकार भी हरकत में आयी और अगले दिन  केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बदायूं जाने का कार्यक्रम बन गया है । 
इसके अलावा भाजपा सांसदों के नेतृत्व में भी एक प्रतिनिधिमण्डल पीडि़त परिवार से रविवार को मिला ।  इस प्रतिनिधिमंडल ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेज दी है ।  सूत्रों का कहना है कि पीएम को भेजी गई रिपोर्ट में पुलिस की कार्रवाई पर तमाम तरह के सवाल खड़े किए गए हैं ।  इसके अलावा प्रदेश सरकार पर इस मामले को हल्के में लेने का आरोप लगाया गया है।  सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तथा डीजीपी एएल बनर्जी और प्रमुख सचिव गृह अनिल गुप्ता के बदायूं ना पहुंचने पर बदायूं पहुचे नेताओं ने नाराजगी भी जतायी है।  

दबाव में ही सही, पर अब उत्तर प्रदेश सरकार भी पीड़ितों को न्याय दिलाने को तैयार है। प्रदेश सरकार सीबीआई जाँच कराने को भी राजी हो गई है, जिसके अच्छे परिणाम आने की आशा व्यक्त की जा सकती है, लेकिन फिलहाल गाँव व क्षेत्र के लोगों के चेहरों पर यह सब देख कर अलग तरह के ही भाव हैं। गाँव में देश के नहीं, बल्कि विदेश के मीडिया कर्मी भी मौजूद हैं, जिनमें महिलायें भी शामिल हैं। लग्जरी गाड़ियों का बेड़ा खड़ा है। वीवीआईपी के चलते अत्याधुनिक सुरक्षा कवच है। तमाम चैनलों की टीम मौके से लाइव प्रसारण कर रही है, जिसे देख कर गाँव व क्षेत्र के अधिकांश लोगों में कोई स्तब्ध हैं, कोई रोमांचित है, कोई और दुखी है, कोई खुश है, तो कोई विचार शून्य अवस्था में सिर्फ नजारा देखता ही नज़र आता है। न्यायालय में क्या होगा, यह तो आने वाले दिनों में ही साफ हो पायेगा, पर यह घटना यहाँ सदियों तक याद की जाती रहेगी।


लेकिन इन सब के बाद भी एक सवाल तो ये रह ही जाता है कि आज अगर मीडिया इस घटना को खबर न बनाती तो ये घटना उत्तम प्रदेश के शोर में न जाने कहा खो जाती पता नहीं चलता और ऐसे ही हम यानी सत्ता शीर्ष  विकास के नाम की, और महिला सुरक्षा के हवाई किले बनाते रहते । इस घटना में एक पहलू ये भी हुआ जहाँ पीड़ित पिता ने कहा की उसे मरहम यानी मुआवजा नहीं न्याय चाहिए , लेकिन उसे न्याय तो नहीं हाँ  न्याय की आशा जरूर मिली है । 

बात  वहीं ख़त्म करूँगा जहाँ सरकारी मरहम सबको नहीं मिलता लेकिन जिसको मिलता है उसको अच्छे के लिए भी नहीं मिलता और जहाँ मिलता है वहीं  बनता है "पीपली लाइव''  …………… 


''पुरबिया बकइतबाज'' ....

  

Friday, 16 May 2014

लोकतंत्र महासमर का अंत , नए भारत की शुरुआत ……

लोकसभा चुनावों में मोदी की सुनामी  पर सवार बीजेपी ने 30 साल का रिकॉर्ड  तोड़ते हुए अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया है। और अब ऐसा कहा जा रहा है की " अच्छे दिन आ गए" , प्रचंड जीत के बाद मोदी ने बड़ोदरा की धन्यवाद जनसभा में जिस भाव के साथ विश्वास दिलाया तो एक बार को लग रहा है , शायद अब वाकई अच्छे दिन वाले हैं , सच पूछिये तो इस  प्रचंड बहुमत  की आशा बी जे पी और मुकम्मल हिन्दुस्तान को  भी नहीं था । लेकिन इन चुनावों ने एक बार फिर दिखाया की जनता वाकई बदलाव चाहने के साथ अब एक बहुमत वाली सरकार चाहती है , ऐसा पिछले विधानसभाओं के चुनावों में देखा जा चुका है , और अबकी एक स्थाई सरकार देकर इसको फिर से सिद्ध कर दिया ।

बड़ोदरा की जनसभा में मोदी ने कहा ''अब तक ज़्यादातर नेतृत्व उन लोगों के पास था, जो आज़ाद हिंदुस्तान में पैदा नहीं हुए थे" ,उन्होंने कहा, ''आज पहली बार आज़ाद हिंदुस्तान में पैदा होने वाले नेतृत्व के हाथ में सरकार की बागडोर आई है. पता नहीं इस पर राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान गया है नहीं" , इस सरकार के गठन और चुनावों पर विश्व भर की नजरें टिकी थीं ।
इन चुनावों में कई राजनितिक बदलाव भी देखने को मिले और शायद ये अच्छे राजनीतिक परिदृश्य के लिए अच्छा भी हो सकता है ,पूर्व सेनाध्यक्ष वी के सिंह कुछ दिन पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे और  गाजियाबाद से उन्हें शानदार जीत मिली। इसी तरह मुंबई के पूर्व कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने मोदी की लहर थामकर दिग्गज अजित सिंह को धूल चटा दी। बीजेपी के इन नए नेताओं के अलावा बड़े नेताओं ने भी अपनी सीटों पर दबदबा बनाए रखा है। इस ऐतिहासिक जीत के साथ ऐतिहासिक उम्मीदें भी जुड़ी हैं।

सिर्फ इंडस्ट्री, बाजार और इकॉनोमी की नहीं बल्कि उन करोड़ो लोगों की जिन्होंने नरेंद्र मोदी में अपना भरोसा दिखाया है। जिन्होंने बीजेपी के लिए वोट नहीं किया, उनकी भी उम्मीदें होंगी की ये सरकार अपने वादे पूरा करेगी।


अब ये आगे आने वाले समय में पता चलेगा की " मोदी सरकार " के वादे धरातल पर कितने और कैसे आते हैं , क्योंकि ये जनता है जो ''अर्श से फर्श'' दोनों का स्वाद देती है ।



--पुरबिया बकैतबाज--

Thursday, 20 March 2014

ऐसे पार करेंगे ''मिशन 272'' 

जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं , और लोकसभा महासमर के अश्वमेध यज्ञ के लिए सेनाएं तैयार हो कर अपने महारथियों का ऐलान कर रही हैं वहीँ , अपने आपको अगले सत्ता के रथी के रूप दावा कर रहे भारतीय जनता पार्टी के भीतर  क्या वाकई में सब ठीक ठाक है ? माहौल और हालातों को देखने से ऐसा लगता तो नहीं , हालाँकि "बाऊ राजनाथ '' और उनके अश्वमेधी धुरंधर ऐसी बातों से इंकार कर रहे हैं ,  और कह रहे हैं ''ऑल इज़ वेल ''  ........

 पहले डॉ. मुरली मनोहर जोशी की वाराणसी से उम्मीदवारी, फिर लालकृष्ण आडवाणी की गांधीनगर से लड़ने के प्रति अनिश्चितता ने भाजपा नेतृत्व और खासकर उसके प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी की चुनाव प्रबंधन क्षमता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। इन दो राजनीतिक घटनाओं से एक बात तो साफ़ हो गयी कि भारतीय जनता पार्टी के अंदर कुछ ऐसा मंथन हो रहा है जो आगे चल कर कहीं "हलाहल विष'' का रूप न धारण कर ले कि  शीर्ष  नेतृत्व के पास  कोई जवाब न बचे ।



भाजपा में आडवाणी और जोशी दोनों एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। लेकिन भाजपा नेतृत्व के व्यवहार ने इस मामले में दोनों को एक कर दिया है। दोनों नेताओं के समर्थक संघ व भाजपा में व्यक्ति विशेष को सर्वोपरि कर देने की कथित तौर पर नई परंपरा को इस सबके लिए कोस रहे हैं।




यहाँ इन दो तथ्यों से   यह साफ संदेश गया है कि भाजपा में शीर्ष स्तर पर नेताओं के बीच संवादहीनता चरम पर है और आपस में एक दूसरे को शक की निगाह से देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के बाद जो भी संभावित दावेदार हो सकते हैं उन्हें जानबूझकर बेइज्जत किया जा रहा है।  डा. जोशी ने वाराणसी के बजाए कानपुर से लड़ने को लेकर कभी आपत्ति नहीं की। लेकिन पहले दिन से किसी ने भी उन्हें भरोसे में लेने की कोई कोशिश नहीं की। यही आडवाणी के साथ भी हुआ। पहले उन्हें राज्यसभा में भेजने की अफवाहें फैलाई गई। जब उन्होंने साफ कर दिया कि वह लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं तो गांधीनगर स्थानीय कार्यकर्ताओं में उनके खिलाफ रोष के समाचार आने लगे।


इस परिप्रेक्ष्य में  पिछले कुछ समय में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच जिस तरह आडवाणी की मोदी विरोधी छवि बनाई गई है उसमें आडवाणी के लिए भोपाल के अलावा और कोई सुरक्षित सीट रह भी नहीं गई है। गांधीनगर से उम्मीदवारी के केंद्रीय चुनाव समिति के फैसले को 24 घंटे लटका कर आडवाणी ने कभी अपने शिष्य रहे मोदी को उनके ही खेल में मात दी है। आडवाणी विरोधी भी मान रहे हैं कि गांधीनगर में अब मोदी को वडोदरा से ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। जबकि नेतृत्व अभी भी आश्वस्त नहीं है कि इसके बाद आडवाणी कोई बखेड़ा नहीं करेंगे।

आज जाकर स्पष्ट हुआ की  बी जे पी के ''लौहपुरुष '' ने अंततः अपनी हामी भर दी   ,गुजरात के गांधीनगर से उम्मीदवार बनाए जाने से खफा बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने आखिरकार तस्‍वीर को साफ करते हुए कहा कि अब वे गांधीनगर सीट से ही लोकसभा चुनाव का चुनाव लड़ेंगे , हालाँकि अब आगे पता चलेगा कि ये चुनावी पैंतरे बी जे पी को किस दिशा में ले जाते हैं । 



''पुरबिया बकैतबाज'' ........

Saturday, 1 March 2014

रविवार बना " रैलीवार " …… 

पिछले कुछ समय से सोचता हूँ आज रविवार है आज अगर कार्यालय जा रहा हूँ तो जी को कुछ सुकून मिलेगा , कारण ये की मीडिया कि नौकरी में केवल रविवार को ही कुछ कहा जा सकता है कि आज आराम मिल सकता है , लेकिन पिछले कुछ समय से ऐसा लगता है कि सियासी पार्टियो कि जैसे कोई सांठगांठ बन गयी है कि रविवार को ही रैलियो का अम्बार कर देती हैं , ऐसा ही शायद मेरे सभी मीडियाकर्मी सहयोगी भी मानते होंगे , अगर रविवार को कोई रैली हो गयी तो बस न्यूजरूम में केवल एक ही बात निकलती है कि " भई संडे की  तो लग गयी" …… 

अब सन्डे के लगने कि बात सुनिये सबसे पहले तो नेता जी का फालो अप , इसके बाद नेता जी के बोल वचन , अब इसके बाद नेता जी के बोल वचन के बखिया उधेड़ने वालो कि जमात को इकट्ठा करने कि जुगत , सन्डे बेचारा इसी में मारा जाता है । 

आब आज जब ये बात लिख रहा हूँ  तो आज भी तीन धुरंधर जमातो की रैलियां ही हैं , पहले तो भाजपा के दूसरे  पी एम इन वेटिंग मोदी भाई आज नवाबो के शहर लखनऊ में हैं , इसके बाद धरती पुत्र मुलायम संगम नगरी इलाहाबाद में , और भ्रष्टाचार को झाड़ू से सफाई करने का बीड़ा उठाये केजरी भाई आज यू पी के मैनचेस्टर  यानी कानपुर में हैं । 





तीन कोनो से आज सिर्फ एक ही बात निकलेगी अगला वाला निकम्मा , भ्रष्ट और जनता के लिए नालायक है , आप सिर्फ हमारे बारे बारे में अच्छा सोचिये … और मैं  क्या सोचता हूँ कि चाहे जितना फेंक लो , साला आज तो मेरी लग गयी  ……