लाल सलाम की रिसर्च और मै ........
यकीन मानिये आज जब मै ये नयी बकैती कर रहा हूँ तब तक "लाल सलाम" यानी नक्सलवाद या माओवाद के बारे में इतना कभी जानने की कोशिश नहीं की थी , लेकिन आज कर रहा हूँ क्योंकि जानना जरुरी था । लाल सलाम यानी नक्सलवाद के बारे में हर उस जानकारी को प्राप्त करने का मन कर रहा था जिस से देश के इस कैंसर की जड़ के बारे में पता चल सके ।
आज का मौका इसलिए भी था की एक इतनी बड़ी घटना जिस से आज छत्तीसगढ़ में कोहराम मच गया , केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं दिल्ली तक के नेता और सरकार हिल गए और नतीजा कांग्रेस के तीनो दिग्गज एक ही दिन एक ही जगह पर मौजूद रहे ।
कल छत्तीस गढ़ के सुकमा में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर लगभग 500 से 700 नक्सलियों ने चारो तरफ से घेर कर हमला किया जिसमे पहले माइन्स ब्लास्ट किया फिर चारो तरफ से नाम पूंछ पूंछ कर कांग्रेसियों को गोली मारी जिसमे सरकारी मौत का आंकड़ा 29 का और घायलों का आंकड़ा लगभग 40 बताया गया । ये घटना ऐसी थी की कोई कांग्रेसी या किसी नेता और पार्टी ने सोची भी नहीं होगी और ये नक्सल नरसंहार के इतिहास का एक और काला पन्ना बन गया ।
खैर घटना हुई लेकिन इस घटना ने जिस तरह से अपना स्वरुप बनाया वो चित्र और भयावह बन गया ..... मै तत्समय की परिस्थितियां और काल सोच कर सिहर गया .. जिस समय ये घटना पहली बार मीडिया में आई उस समय मै अपने न्यूजरूम के अपने डेस्क पर लगभग उबासी ले रहा था क्योंकि उस समय कोई विशेष काम नहीं था और मै भी गीतों का आनंद ले रहा था ...
सहसा ये खबर आई और मै चौंक कर तन गया , क्योंकि ये तो पता था की आज कांग्रेस की यात्रा सुकमा और जगदलपुर क्षेत्र में होगी लेकिन ये तो एकदम विस्मित , चैतन्यता और क्या क्या कहूँ की क्या क्या कर गयी .... खैर घटना की अंतिम अपडेट ये थी की रात में ही राहुल गाँधी और दिल्ली से एयरबेस रवाना होगा ...लेकिन इससे पहले की घटनास्थल की उन तस्वीरो को शायद आने वाले कुछ समय तक नहीं भूलूंगा जो मैंने देखीं या यूँ कहिये की कैमरे ने दिखाई , नहीं भूलूंगा कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल की वो तस्वीर जिसमे वो गाड़ी की टेक लेकर और लथपथ हालत में लगभग ढाई घंटे उस जंगल बीहड़ में बिताये और साथ ही वो तस्वीरे भी जिसमे मीडिया के पहुँचने तक गोलियों से छलनी उन कार्यकर्ताओ और नेताओं के शव घंटो पड़े रहे , कारण यही था की घटना इतने बीहड़ जंगल में हुयी थी की वहां से सूचना आने तक दो घंटे लग गए ......
खैर घटना हो गयी और जब मैंने इस पर विचार किया तो मुझे हर जानकारी ही कम सी लगी मसलन इन माओवादी और नक्सलियों का इतिहास क्या रहा , या माओ के सिद्धांतो में क्या इतना रक्तरंजित होना लिखा है ..... इसके बाद पता चला की इतिहास तो लगभग आजादी के समय से ही चला आ रहा है लेकिन उस वक्त न तो हमारे पास इतनी सोच थी की इस नई पैदा हो रही सोच को बदल सकें और ना ही हमने इसे जरुरी समझा , और नतीजा आज हमारे सामने विकराल बन गया है ।
अब जब इस नक्सल समस्या ने अपनी विचारधारा की पैठ बनायीं तो ये इक्कीसवी सदी की नए खून में अपनी गर्मी पैदा करनी शुरू कर दी और कुछ समय से हर वो युवा लाल सलाम को अपनाने लगा जो संवैधानिक तंत्र से हार गया और इस लाल सोच को अपनाने लगा , इसी सोच को समूल नाश करने के लिए "सलवा जुडूम " बना , जो मेरे हिसाब से तो सही था लेकिन उसमे कुछ ऐसी व्यवस्था बनती गयी की जो नक्सल प्रभावित लोगो के हितो की लड़ाई लड़ने के बजाय उन शोषित लोगो का ही शोषण करने लगे , यानी सलवा जुडूम था तो आदिवासियों की हक और हकूक की रक्षा के लिए लेकिन ऐसी बाते आयीं की उसके एस पी ओ ही उन आदवासी लोगो का शोषण करने लगे , ऐसे में समस्या और विकराल हो गयी , और अब इस सलवा जुडूम की साख पर बट्टा लग रहा है ... सलवा जुडूम के जनक बस्तर के कांग्रेसी नेता महेन्द्र कर्मा कल की नक्सली नरसंहार की घटना में गोलियों से छलनी किये गए ..इसी घटना में छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष नन्द कुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल को मौत के घात उतार दिया गया , और विद्याचरण शुक्ल गुडगाँव की मेदान्ता अस्पताल में जिन्दगी मौत के बीच झूल रहे हैं
चलिए , इस घटना ने कांग्रेस की एक पीढ़ी को खतम कर दिया और देश में एक बार फिर से एक नयी बहस आने वाले कुछ दिनों तक के लिए चलाने का अवसर दे दिया है , बहस इस बात की अभी कितने लोग और इस लाल क्रांति की विचार धारा की भेंट चढ़ेंगे ? या फिर इस विकराल समस्या से निपटने में क्या हम वाकई अक्षम हैं ? या फिर अगर इसको समाप्त किया जाये तो कैसे किया जाए ?
इतनी मेरी उम्र नहीं की मै कोई बदलाव कर सकूँ , लेकिन इतनी समझ जरुर है की कुछ सुझाव जरुर दे सकता हूँ .........
पहला इस समस्या से निपटने के लिए हमें व्यवस्था की तीनो ढांचो जैसे आर्थिक , सामाजिक और राजनितिक सभी पर आधारभूत कार्यक्रंम का क्रियान्वयन करना होगा , जैसे सबसे पहले आदिवासियों को भूमि सुधार सम्बन्धी कार्यक्रम का पूरा लाभ देना होगा , और उन्हें उनका पूरा हक़ मिले , जो अर्ध सुरक्षा बल नक्सलियों के खिलाफ लड़ रहे हैं उन्हें पूरी आजादी मिलनी चाहिए , इसके अलावा आदिवासियों को उनकी जीवन शैली उनकी संस्कृति की पूरा सम्मान करते हुए उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया जाना आवश्यक है इन सबके लिए हमारी केंद्र सरकार को और गंभीर होना पड़ेगा , क्योंकि दिल्ली में बैठकर और ए सी कमरों में राजनीति करके और जनता की हितो का कार्यक्रम बना लेना बहुत आसान है , असल काम धरातल पर दिखना आवश्यक है , क्योंकि महानगरो की जीवनशैली और परिस्थितियां दंतेवाडा , बस्तर, सुकमा , पलामू , गिरिडीह और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रो से बहुत अलग है या यों कहें की अनोखी हैं ..................
बकैतबाज ....
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